माता सीता ने अपने हाथों से बनाया था कुलेश्वरनाथ महादेव का शिवलिंग



महाशिवरात्रि पर उमडे़गी राजिम पुन्नी मेला में श्रद्धालुओं की भीड़



पवन कुमार निषाद
मगरलोड (धमतरी) । राजिम-माघी पुन्नी मेला का समापन 21 फरवरी दिन शुक्रवार को महाशिवरात्रि के अवसर पर होगा। लगातार पन्द्रह दिनों तक चलने वाले इस मेले में  शिव मंदिरों समेत सोंढुर, पैरी एवं महानदी के संगम मे स्नान कर दीपदान किया जायेगा। वही विभिन्न आखाड़ों एवं मठो से पधारे साधु-संतो द्वारा शाही स्नान किया जायेगा। इसके लिये प्रशासनिक स्तर पर विशेष तैयारियाॅ की गई हैं। मेले की सुरक्षा के लिए 1400 पुलिस बल की व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं को कहीं पर भी दिक्कत न हो इसलिये चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात रहेंगे। ज्ञातव्य हो कि धर्मधरा राजिम मेे अनेक शिव मंदिर है। संगम के बीच में स्थित कुलेश्वरनाथ महादेव का निर्माण त्रेतायुग में माता सीता ने अपने हाथों से बालु से किया था। महाशिवरात्रि पर श्रद्धालुगण स्नान के पश्चात रेत से शिवलिंग बनाते है और पूजा करते है। जनश्रुति है कि सीता स्नान उपरांत शिवजी के अभिषेक के लिये हनुमान को शिवलिंग की मूर्ति लाने के लिये काशी भेजा। 
 
इधर सीता स्नान कर लिये बहुत समय इंतजार की किन्तु हनुमान कहीं नहीं दिखा तब रेत से उन्होंने शिवलिंग बनाकर पूजा-अर्चना की। नदी के जल से अभिषेक किया। इससे पांच  ओर से जल की धारा शिवलिंग से होकर बहने लगे। तब इनका नाम पंचमुखी कुलेश्वरनाथ महादेव पड़ा। अब हनुमान दूर से ही शिवलिंग की पूजा करते हुये सीता माँ को देख लिया। तो पूछने लगा कि इस पार्थिव शिवलिंग को कहा रखूॅ। इस पर जगत जननी माँ सीता ने कहा कि बेटा हनुमान तुम जहाॅ पर हो वहीं पर इसे स्थापित (पाट) कर दो। कालांतर मे यही शिवलिंग पटेश्वरनाथ महादेव कहलाने लगे।  यह राजिम से पाॅच किलोमीटर की दूरी पर पटेवा ग्राम में स्थित है। कुलेश्वरनाथ महादेव का मंदिर सातवी शताब्दी मे बनाया गया है। मंदिर 17 फुट ऊॅची जगती तल पर स्थित है। वर्षो से नदी मे विकराल बाढ़ आ रहे है किन्तु चबुतरा अभी भी जस का तस है। बनाने वाले कारीगर ने इनकी मजबूती पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। चबुतरा में बड़े पत्थरों का उपयोग हुआ है। यही पर एक विशाल पीपल का वृक्ष है जिसे 500 वर्ष पुराना बताया जाता है। 
 
पीपल वृक्ष के गोलाकृति में गंगा, यमुना, गणेश, हनुमान, विष्णु  की प्राचीन कालीन मूर्तियाॅ विद्यमान है। गर्भगृह में कुलेश्वरनाथ महादेव शिवलिंग रूप में है। महामण्डप मे कालभैरव, शीतला माँ, श्याम कार्तिकेय, शनिदेव आदि कि मूर्ति प्रस्थापित है। यहाॅ हमेशा घंटियों की झंकार श्रद्धालुओ को भक्तिभाव से जोड़ती है। सामने नंदी पालथी मारकर बैठे हुये है। शैव भक्तगण महादेव से मन्नत मांगने के पश्चात उसे शीघ्र पूरा करने के लिये नंदी जी के कान मे आकर शब्द दोहराते है। नारद पुराण में शिव की अर्ध परिक्रमा करने का विधान बताया गया है। तट पर पंचेश्वरनाथ महादेव का मंदिर है। मामा-भांजा मंदिर कहा जाता है। कहावत है कि बाढ़ का पानी जब कुलेश्वरनाथ महादेव को स्पर्श करते है और वे डूबने को होता है तब पंचेश्वरनाथ महादेव को आवाज दिया जाता है और फिर धीरे-धीरे बाढ़ का पानी कम हो जाता है। महोत्सव मंच के दक्षिण दिशा में भूतेश्वरनाथ महादेव का मंदिर वास्तुशिल्प कलानुसार उत्कृष्ट नमुना प्रस्तुत किया गया है। प्रयाग भूमि का यह शिवलिंग ऊँचाई मे सबसे बड़ा है। राजीवलोचन मंदिर के सामने राज-राजेश्वरनाथ महादेव का मंदिर स्थापित हैं। हरि और हर यहाॅ से एक सीध मे है अर्थात् दोनों एक दूसरे को निहार रहे है। यहाँ मृत्युंजय मंत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ मना गया है। इसी मंदिर के बगल में दान-दानेश्वरनाथ महादेव का मंदिर कल्चुरी कालीन है। मंदिर में परिक्रमा पथ के लिये कोई स्थान नहीं दिया गया है। इनके पीछे राजिम भक्तिन माता मंदिर में शिवलिंग है जहाँ हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ बनी रहती हैं। रानीधर्म शाला मे बाबा गरीबनाथ का मंदिर है। अर्धनारीश्वर बाबा गरीबनाथ लिंग रूप में विराजमान है। ब्रम्हचर्य आश्रम मे प्राचीन कालीन सोमेश्वरनाथ महादेव का स्वयंभू शिवलिंग है। जहाँ सोम यज्ञ की जानकारी मिलती हैं। इसी तरह पदमनेश्वर महादेव, औघड़नाथ महादेव समेत पाॅच-पाॅच कोस की दूरी पर कोपरा में कोपेश्वर महादेव, फिंगेश्वर में फणीकेश्वरनाथ महादेव, बम्हनी में ब्रम्हकेश्वरनाथ महादेव, चंपारण में चंपकेश्वरनाथ महादेव, पटेवा मे पटेश्वरनाथ महादेव है।

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