कुरुद के देवी मंदिरों में जली आस्था की ज्योत,पंचमी पर हुआ माता का सोलह श्रृंगार

 

 मुकेश कश्यप

कुरुद। नगर सहित अंचल में शारदीय नवरात्रि का हर्षोल्लास छाया हुआ है।नगर की अधिष्ठात्री देवी माँ चंडी ,माँ शीतला चंडी पारा,माँ शीतला पचरीपारा ,जय माँ काली व छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर में भक्तगणों ने आस्था के ज्योत जलाकर माता के सम्मुख अपनी श्रद्धा भक्ति प्रकट की है।प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी लोगो ने माता रानी के भुवन में मनोकामना ज्योत जलाकर जनकल्याण की कामना की है।

        नवरात्रि के पांचवे दिन पंचमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।नगर के देवी मन्दिरो में सुबह से ही भक्तगण दर्शन के लिये पहुंचे।पंचमी का दिन माता सिद्धिदात्री के पूजन का दिन है।इस दिन जगतजननी का सोलह श्रृंगार किया जाता है।इस दिन शक्ति स्वरूपा का पूजन करते हुए उन्हे विशेष श्रृंगार से सजाया जाता है।           

          सुबह से ही माता रानी के सम्मुख भक्तों की भीड़ नजर आई।सभी भक्तगण माता के सम्मुख अर्जी लगाकर परिवार व जनकल्याण की कामना कर रहे है।रविवार को शुभमुहूर्त में माता रानी का भव्य सोलह श्रृंगार किया गया।भक्तगणों ने आस्था का प्रतीक ज्योत जलाकर अपनी श्रद्धाभक्ति प्रकट की है।इसी तरह नगर के पंडालों में विराजमान माँ दुर्गा की मनमोहक प्रतिमाओं में भक्तगणों ने श्रृंगार सामान चढ़ाते हुए अपनी आस्था को प्रकट किया है।

           नवरात्र‍ि में मां को 16 श्रृंगार चढ़ाया जाता है।दरअसल ऐसी मान्यता है कि इससे घर में सुख और समृद्ध‍ि आ‍ती है और अखंड सौभाग्य का वरदान भी मिलता है।यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में सोलह श्रृंगार को जीवन का अहम और अभिन्न अंग माना गया है।ऋग्वेद में भी सौभाग्य के लिए सोलह श्रृंगारों का महत्व बताया गया है।सोलह श्रृंगार में मौजूद हर एक श्रृंगार का अलग अर्थ है।बिन्‍दी को भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से जोड़कर देखा जाता है।वहीं सिंदूर सौभाग्‍य और सुहाग की निशानी होती है।महावर और मेहंदी को प्रेम से जोड़कर देखा जाता है।काजल बुरी नजर से बचाता है।मां का सोलह श्रृंगार करने से घर और जीवन में सौभाग्‍य आता है. जीवन में खुशियां ही खुशियां आती हैं और जीवनसाथी का स्‍वास्‍थ्‍य अच्‍छा बना रहता है।



             नवरात्रि का पांचवा दिन माता स्कंदमाता के पूजन से जुड़ा है।यह स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है।मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं।माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाने जाते हैं।ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है।इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।



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