धन्यधरा धमतरी, जहां महात्मा गांधी ने दो बार पहुंचकर किया फिरंगी हुकूमत के खिलाफ शंखनाद

कंडेल का रहा है गौरवशाली  इतिहास 

धमतरी  इतिहास के पन्नों में वही नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज होते हैं जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य और साहस का साथ नहीं छोड़ते। आज जिले का रूप ले चुका धमतरी कभी तहसील हुआ करता था, जहां के भोले-भाले किसानों ने अंग्रेजों के तानाशाही रवैए के विरूद्ध आवाज बुलंद की थी। यहां तक कि इसकी गूंज दिल्ली तक भी पहुंची, जिसके बाद भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों के अग्रचर, पुरोधा और राष्ट्र के गौरव महात्मा गांधी यहां आना पड़ा, वह भी एक नहीं, दो-दो बार..। सम्पूर्ण भारतवर्ष के कोने-कोने में क्रांति की ज्वाला धधक रही थी, तब तत्कालीन सेंट्रल प्राॅविन्स एण्ड बरार प्रांत के रायपुर जिले की धमतरी तहसील भी इससे अछूती नहीं रही। पंडित सुन्दरलाल शर्मा, नारायणराव मेघावाले, बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव, नत्थूजी जगताप जैसे मूर्धन्य प्रणेताओं ने स्वतंत्रता आंदोलनों में अपनी सहभागिता दी। धमतरी के दो बड़े आंदोलनों ने पूरे राष्ट्र का ध्यानाकृष्ट किया, जिनमें वर्ष 1920 में कण्डेल नहर सत्याग्रह और 1933 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शामिल हैं। इन दोनों आंदोलनों का उल्लेख किए बिना धमतरी के स्वर्णिम इतिहास की जानकारी अधूरी रह जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दोनों ही आंदोलनों के दौरान अपने पुण्य-पग धमतरी में धरे, जिसके चलते धमतरी को राष्ट्रपटल पर बड़ी पहचान मिली। दो अक्टूबर 2019 को गांधीजी की जयंती देशभर सहित प्रदेश में भी धूमधाम से मनाई जा रही है।
ब्रिटिश हुकूमत के दौर में जब फिरंगी और उनकी नीतियों की मुखालफत करने की किसी में हिम्मत नहीं होती थी, ऐसे में धमतरी के ग्राम कण्डेल के किसानों ने बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में अंग्रेजों की दमन नीति के विरूद्ध नहर सत्याग्रह छेड़ा। यह तब की बात है, जब गुजरात के विख्यात बारदोली आंदोलन ने अंगड़ाई भी नहीं ली थी।

कण्डेल का नहर सत्याग्रह, ब्रिटिश शासन के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आगाज:- तत्कालीन तहसील मुख्यालय धमतरी से पूर्व दिशा की ओर 18 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम कण्डेल बसा है। बिटिश शासनकाल में महानदी नहर योजना के तहत सन् 1912-15 में रूद्री बैराज का निर्माण किया गया था, जहां से नहर-नालियों के जरिए आसपास के गांवों में फसलों के लिए सिंचाई सुविधा दी जाती थी। सिंचाई विभाग के अधिकारी उक्त नहर से खेतों में पानी देने के लिए किसानों से दस वर्ष का अनुबंध करना चाहते थे। अनुबंध की राशि अधिक होने के चलते किसान इसके लिए कतई तैयार नहीं थे, क्योंकि इतनी भारी-भरकम राशि से एक बड़ा तालाब बनाया जा सकता था। करारनामा से इंकार करने से बौखलाए सिंचाई अधिकारी अगस्त 1920 में नहर को काटकर पानी खेतों में बहा दिया। संयोगवश उसी दिन क्षेत्र में भारी बारिश हुई। उल्टे अधिकारियों ने गांववालों पर नहर काटकर पानी चोरी करने का आरोप लगाते हुए कण्डेल के ग्रामीणों पर 4 हजार 304 रूपए का जुर्माना थोप दिया। (आज के समय में यह राशि लाखों रूपए में आंकी जा सकती है)। उक्त जुर्माना राशि को वसूलने अंग्रेज अधिकारी तरह-तरह के हथकण्डे अपनाने शुरू कर दिए। ऐसे में सीधे-सादे ग्रामीणों का साथ देने गांव के मालगुजार बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव उनका साथ देने आगे आए। उन्होंने इसका शांतिपूर्वक विरोध करते हुए इसे नहर सत्याग्रह का नाम दिया।
सितम्बर 1920 में ग्रामवासियों और धमतरी तहसील के प्रमुख नेताओं की बैठक कण्डेल में जिसमें बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के अलावा पंडित सुंदरलाल शर्मा, नारायणराव (फड़नवीस) मेघावाले आदि नेताओं ने सत्याग्रह के साथ ब्रिटिश नौकरशाही का विरोध करने का निर्णय लिया। जुर्माना राशि की वसूली नहीं होते देख किसानों की चल-अचल संपत्तियों को कुर्क करने का आदेश विभाग के अधिकारियों ने दिया। इसके बाद किसानों के सभी मवेशियों को अपने कब्जे में लेकर उन्हें नीलाम करने का असफल प्रयास हुआ। पहले धमतरी शहर के बैला बाजार में बोली लगाने की कोशिशें हुईं, जिसमें देशभक्त व उत्साही लोगों ने नीलाम में हिस्सा लेना तो दूर, बाजार के आसपास भी नहीं गए। इससे लज्जित ब्रिटिश शासन के कर्मचारी भूखे-प्यासे मवेशियों को क्रमशः मगरलोड, भेण्डरी, कुरूद सहित आसपास के बड़े बाजारों में घुमाते रहे। रायपुर जिला ही नहीं, जिले के बाहर दुर्ग, भाठापारा के मवेशी बाजारों में भी नीलाम के लिए लेकर गए, लेकिन सत्याग्रही किसानों एवं नेताओं के निवेदन पर कोई भी व्यक्ति नीलामी को तैयार नहीं हुआ। इस दौरान भूख-प्यास के मारे कुछ मवेशियों ने दम तोड़ दिया। नीलामी नहीं होने की हताशा व खीझ में ब्रिटिश सरकार ने इसके बाद दमनचक्र अपना शुरू किया। बाबू छोटेलाल और उनके चचेरेभाई लालजी श्रीवास्तव गिरफ्तार कर लिए गए। इसके बाद भी ग्रामीणों ने सत्याग्रह जारी रखा। इसी बीच केन्द्रीय नेतृत्व को आमंत्रित करने के लिए पंडित सुन्दरलाल शर्मा और नत्थूजी जगताप दिसम्बर 1920 में कलकत्ता गए तथा गांधी जी को इसमें हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। इसे बापू ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इधर गांधी जी के छत्तीसगढ़ आने की खबर लगते ही रायपुर के डिप्टी कमिश्नर को वस्तुस्थिति की जांच के लिए 19 दिसम्बर को कण्डेल भेजा गया, जहां जांच के बाद आरोप को बेबुनियाद पाया गया। अंततः अंग्रेजी हुकूमत बैक फुट पर जुर्माने की राशि माफ करने का निर्णय लिया। इस प्रकार गांधी जी के आगमन के पूर्व ही ब्रिटिश शासन ने घुटने टेक दिए। इसके बावजूद किसानों ने अपना आंदोलन जारी रखा।
गांधी के स्वागत में उमड़ा धमतरी, जाते-जाते कहा- ‘‘धमतरीवासी चम्पारण के लोगों से अधिक जागरूक हैं‘‘
इधर महात्मा गांधी 20 दिसम्बर 1920 को ट्रेन से मौलाना शौकत अली के साथ रायपुर पहुंचे, फिर 21 दिसम्बर को धमतरी में आगमन हुआ। नगर के प्रवेश द्वार मकईबंद चैक (वर्तमान घड़ी चैक) पर उनके पहुंचते ही पूरा इलाका जय हिन्द, भारतमाता की जय, वंदे मातरम् और महात्मा गांधी की जय जैसे देशभक्ति नारों से गूंज उठा। सुबह से सड़क के दोनों ओर हजारों की तादाद में स्त्री-पुरूषों ने पुष्पवर्षा करते हुए उनका स्वागत किया। सभा की व्यवस्था स्थानीय जानू हुसैन के बाड़े में की गई थी। भीड़ की अधिकता के चलते गांधी जी का सभा स्थल तक पहुंचना संभव नहीं था, ऐसे में पुरूर के उमर सेठ नामक कच्छी व्यापारी ने उन्हें अपने कंधे पर बिठाकर सभा स्थल तक पहुंचाया। इसी जगह पर स्थानीय मालगुजार बाजीराव कृदत्त ने उन्हें 501 रूपए की थैली भेंट की। इस दौरान गांधीजी ने अपने भाषण में कण्डेल नहर सत्याग्रह की अहिंसापूर्वक अभूतपूर्व जीत की बधाई देते हुए भविष्य में भी इसी राह पर चलते की इच्छा जताई। धमतरी की राजनैतिक गतिविधियों की जानकारी लेते हुए कहा कि यहां पर चम्पारण के लोगों से कहीं अधिक जागरूकता देखने को मिली है। इस बात को उन्होंने रायपुर में आयोजित आमसभा में भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया। गांधीजी के संबोधन के बाद धमतरी के मालगुजार दाऊ डोमार सिंह नंदवंशी, सेठ हंसराज तेजपाल, किशनगिरी गोसाईं, रघुनाथराव जाधव, सेठ मोहनलाल मुंशीलाल, वीरजी भाई राजपुरिया, मोहम्मद अब्दुल करीम, छोटेलाल दाऊ, अब्दुल हकीम वकील, सेठ उस्मान अब्बा, भानजी भाई ठेकेदार एवं बदरूद्दीन मालगुजार ने उनसे संक्षिप्त भेंट की। इस प्रकार छत्तीसगढ़ ही नहीं, भारतवर्ष के राष्ट्रीय आंदोलनों के इतिहास में धमतरी के कण्डेल नहर सत्याग्रह ने प्रमुख से स्थान बना लिया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गांधीजी का 1933 में धमतरी पुनरागमन:-
कण्डेल नहर सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी का धमतरी आगमन हुआ था, तदुपरांत सविनय अवज्ञा आंदोलन दौरान धमतरी की जमीन पर उनका पुनरागमन हुआ था। नवम्बर के तीसरे सप्ताह में गांधीजी छत्तीसगढ़ आए। इसी क्रम में 24 नवम्बर 1933 को सुबह आठ बजे वे रायपुर से धमतरी मोटर से पहुंचे। उनके साथ मीराबेन, ठक्कर बापा, महादेव देसाई और जमनालाल बजाज की पुत्री भी थीं। गांधीजी के नगर आगमन के अवसर पर मकईबंद चैक पर नारायणराव मेघावाले तथा नगरपालिका परिषद की ओर से नत्थूजी जगताप ने पुष्पमाला पहनाकर स्वागत किया। तदुपरांत दाजी मराठी कन्या शाला में विशाल सभा को संबोधित किया। तत्पश्चात् बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के धमतरी स्थित निवास के सामने महिलाओं की सभा को संबोधित किया, जिसके बाद महिलाओं ने जेवर के तौर पर पहने हुए सोने-चांदी के अपने आभूषणों को उतारकर स्वेच्छा से गांधीजी को आंदोलन को गति देने व अछूतोद्धार के लिए भेंट की। इनमें यशोदाबाई कृदत्त और सावित्री बाई देवांगन प्रमुख थीं। तदुपरांत गांधी जी की तीसरी सभा नगरपालिका स्कूल प्रांगण में हुई। यहां पर मालगुजार खम्हनलाल साव ने उन्हें सिक्कों व रूपयों से भरी थैली का गुप्तदान किया, जबकि नगरवासियों की ओर से नारायणराव मेघावाले ने 501 रूपए की थैली भेंट की। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति नगरवासियों की निष्ठा को देखकर गांधी ने कहा- ‘‘यह तहसील भारत की दूसरी बारदोली है..।‘‘
आंदोलन के साथ-साथ गांधीजी यहां अछूतोद्धार में भी संलग्न रहे। धमतरी के चरण सतनामी, बिशाल सतनामी और लालाराम सतनामी ने गांधीजी से भेंटकर अपने साथ मोहल्ले में चलने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। मोहल्ले की स्वच्छता देखकर वे प्रभावित हुए और साफ-सफाई को आगे भी बनाए रखने की बात मोहल्लावासियों से कही। इस दौरान गांधीजी के दोपहर के भोजन की व्यवस्था समाज के मुखिया चरण सतनामी ने की थी। दोपहर तीन बजे के बाद गांधीजी नवापारा-राजिम के लिए रवाना हुए।
इस आंदोलन के पहले भी वर्ष 1930 में धमतरी तहसील के राष्ट्रभक्तों ने अनेक सत्याग्रह व आंदोलन में हिस्सा लिया। इनमें गट्टासिल्ली सत्याग्रह (जून-1930), रूद्री-नवागांव जंगल सत्याग्रह (अगस्त-1930) का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। जंगल सत्याग्रह के दौरान मींधु कुम्हार की मृत्यु हो गई थी, जबकि धारा-144 के दौरान 27 लोगों को अर्थदण्ड और 23 आंदोलनकारियों को छह माह का कारावास (इनमें श्री मेघावाले को एक वर्ष का सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी) से भी दण्डित किया गया था। इस प्रकार राष्ट्रीय आंदोलनों के दौरान धमतरी के देशभक्तों ने प्रत्येक गतिविधि में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। गांधी जी का दो बार नगर आगमन ने इसे और भी ऐतिहासिक व गौरवपूर्ण बना दिया।
आलेख- ताराशंकर सिन्हा

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