VDO:पैरा से बनाया सेनिटरी नेपकीन, धमतरी की पेडवूमेन ने किया कमाल




डॉ भूपेंद्र साहू
धमतरी।धमतरी की एक समाजसेवी महिला ने धान के पैरा या पराली से सेनिटरी नेपकीन बनाकर तो कमाल ही कर दिया। चंद घंटों में वह पेड वूमेन के नाम से प्रसिद्ध भी हो गई ।फिलहाल ये अनोखा प्रयोग विभिन्न मानको की जांच की प्रक्रिया में है।इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय की मदद किया गया ये प्रयोग अगर तमाम टेस्ट पास कर लेता है तो ये न सिर्फ महिलाओ को सस्ता हाईजीन देगा साथ में पराली के प्रदूषण खत्म करने में सहायता मिलेगी।


धान की पराली जिसे छत्तीसगढ़ में पैरा कहते हैं। इसे या तो किसान जला देते हैं या जानवरो के चारे के काम आता है।क्या कोई कल्पना भी कर सकता है कि इस पैरा से  सेनिटरी नेपकीन भी बन सकती है,वो भी पूरी तरह से डिकंपोसेबल। इस अनोखे प्रयोग को किया है आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ी धमतरी की समाजसेवी महिला सुमिता पंजवानी ।जो बीते 3 साल से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है ।आज ये प्रयोग अपने अंतिम चरण में है।यानी के सरकार द्वारा तय मानको पर  टेस्ट होने के लिये भेज दिया गया है।इस इनोवेटिव और एनवायरमेंट फ्रेंडली आईडिया का ख्याल सुमिता पंजनावी के दिमाग में तब आया जब वो.. अक्सर ग्रामीण क्षेत्र में समाज सेवा का काम करने जाती थी।सुमिता पंजवानी फूड एंड न्यूट्रिशियन में एमएससी है और जबलपुर के जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय में जूनियर साइंटिस्ट रह चुकी है।

 बाजार में जो सेनिटरी नेपकीन आते है उनकी कीमते  सभी वर्ग की पहुंच में नहीं होती लेकिन पैरा से बना नेपकिन उचित दाममें मिल सकेगा। तमाम ब्रांडेड नेपकीन में नायलोन होता है जो डिकंपोज नहीं हो सकता और ये पर्यावरण के लिये भी नुकसान देह है।पैरा का नेपकीन इन दोनो मामलो में  बेहतर है।ये प्रयोग अगर सफल होता है तो इससे .. महिलाओ को सस्ते में हाईजीन तो मिलेगा ही,पर्यावरण संरक्षण भी होगा।और सबसे अहम ये भी कि  किसानो के लिये समस्या बना पैरा या पराली सेआय भी हो सकेगी
सुमिता पंजवानी

सुमिता बताती हैं कि पराली या पैरा जैसे वेस्ट में  काफी सेल्यूलोज होता है जिसे केमिकल की मदद से निकाला जाता है। ये एक तरह से काटन की तरह होता हैजो उपयोग के बाद डिकंपोज होकर मिट्टी में खाद की तरह मिल जाता है। उन्हें उन्होंने बताया कि आर्ट ऑफ लिविंग में पवित्रा प्रोजेक्ट के तहत अभी काम करती थी इस वजह से उन्हें पैरा से नेपकिन बनाने में काफी मदद मिली है ।इसमें उनके परिवार का भी महत्वपूर्ण योगदान है ।अभी यह इंस्टीट्यूट ऑफ कॉटन रिसर्च मुंबई में प्रयोग के लिए गया हुआ है ।पूरी प्रक्रिया होने के बाद अप्रैल 2020 में इसकी लांचिंग की जाएगी । इसका वह पेटेंट जरूर करवाएगी ताकि लोगों को उचित दाम पर यह नैपकिन उपलब्ध हो सके। न सिर्फ पैरा  बल्कि जिन पदार्थों में सैलूलोज होता है मसलन गन्ना गेहूं उनसे भी इसे बनाया जा सकता है,और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बायोडिग्रेडेबल (जो प्राकृतिक रूप से पुनः पृथ्‍वी में घुल-मिल जाए ताकि पर्यावरण को हानि न हो )यानि कि अन्य नैपकिन डीकंपोस्ट नहीं हो पाता है लेकिन इसे यदि जमीन के नीचे दबा दिया जाएगा तो डिकॉम्पोस हो जाएगा ।


 बाइट -सुमिता पंजवानी धमतरी

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