परमात्मा भी माँ के कोख से ही धरती पर आए - प्रज्ञा भारती


पवन दीवान की लिखी रचनाएं जनमानस में हमेशा जीवित रहेगी


चैथी पुण्यतिथि पर ब्रम्हचर्य आश्रम प्रांगण में साध्वी प्रज्ञा दीदी ने की प्रवचन


पवन कुमार निषाद
मगरलोड (धमतरी )। ब्रम्हचर्य आश्रम में रविवार को दोपहर 1 बजे संत कवि पवन दीवान के चतुर्थ पुण्यतिथि के अवसर पर वेदरतन सेवा प्रकल्प के संरक्षक साध्वी दीदी प्रज्ञा भारती ने श्रद्धांजलि देते हुए प्रवचन के दौरान कहा कि ब्रम्हलीन संत कवि पवन दीवान दो कारणों से अत्यंत प्रसिद्ध हुये पहला कृतित्व, दूसरा कृतिया। उनकी व्यक्तित्व इतना विराट था कि उनके सहज एवं सरल स्वभाव से लोग मुग्ध हो जाते थे। उनकी लिखी हुई कृतिया जनमानस ने पंक्ति के रूप में जीवित हैं। ऐसे लोगों की मृत्यु नही होती हैं बल्कि इतिहास में अमर हो जाते हैं। साध्वी प्रज्ञा दीदी ने माँ पर उपमा देते हुए कहा कि श्रद्धा उस मां के प्रति करनी चाहिए जिसने ऐसे पुत्र को जन्म दिया। 
 
जीजाबाई, कौशिल्या, देवकी की तपस्या ने रंग लायी ठीक उसी भांति कृति दीवान के तप से देश को पवन दीवान मिला। देवकी की कोख से कृष्ण का जन्म होना था। उस समय देवतागण माँ की कोख का वंदना करते रहे। माँ का स्थान सबसे ऊंचा है माँ साक्षत ईश्वर है। उन्होने माँ - बाप को अपने रूप में घर-घर भेजा है। कोई भी महापुरूष इस धरती में आसमान से नहीं गिरा। परमात्मा भी देवकी, कौशिल्या के कोख से ही धरती पर आए। माँ से ममता, माँ से समता, वह अनमोल पहली है। उन्होने माँ -बाप की सेवा नही करने वाले संतान को कड़े शब्दों में लताड़ते हुए कहा कि जो माँ की सेवा नही करते और मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना में लीन रहते है उससे देवता असंतुष्ट होते है और जो मंदिर नही जाते और माँ-बाप की सेवा करते है उससे देवगण संतुष्ट हो जाते हैं अर्थात माँ-बाप की सेवा ही सब कुछ है। 
 
उन्होने रामायण प्रसंग के जटायु, सुग्रीव पर चर्चा करते हुए कहा कि इनके ऊपर माँ सीता की कृपा थी। रावण जानता था कि एक बार सीता उनकी ओर दृष्टि डाल दे तो उनका उद्धार हो जाएगा। लेकिन उन्होंने ऐसा नही किया। रावण का कोई गुरू नहीं था। सत्गुरू के आने से जीवन धन्य हो जाता हैं। गुरू किसी को भी बना सकते हैं। दत्तात्रेय ने 24 गुरू बनाएं। उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि वर्तमान में सच्चा गुरू मिलना मुश्किल हो गया। गुरू सादिपनी ने कृष्ण तथा वशिष्ठ ने राम दिया। जीवन में गुरू नहीं तो कोई काम शुरू नहीं। गोस्वामी तुलसीदास के असली गुरू उनकी पत्नि रत्नावली थी। दीदी प्रज्ञा ने आगे कहा कि माँ ममता की मूर्ति है। माँ की परिवरिश संतान का उद्धार करता हैं, माँ, महात्मा और परमात्मा को कभी नही भुलना चाहिए। माँ ब्रम्हा, विष्णु और महेश है वे जन्म, पालन और संस्कार देने का काम करती है। वहा बच्चों की प्रथम पाठशाला है। संत जहां जाता है वह स्थान सोना बन जाता है और जहां से जाता है वह सुना हो जाता हैं। रोते-रोते जन्म लेना प्रकृति है। महापुरूष रोते नहीं बल्कि हँसते हैं। दीवान जी का अट्टहास जग जाहिर था। परेशान लोग भी उनके पास आकर हंस पड़ते थें और उनकी समस्यों का समाधान ऐसे ही निकाल लेते थे। दीदी माँ ने इस अवसर दीवान जी की कविताओं का सस्वर पाठ किया जिन्हें सुनकर श्रोतागण भावविभोर हो उठे। उपस्थित अतिथि एवं श्रोताओं ने पवन दीवान के छायाचित्र पर पुष्पांजली अर्पित की। इस मौके पर पूर्व विधायक एवं ट्रस्ट के अध्यक्ष संतोष उपाध्याय, नगर पंचायत अध्यक्ष रेखा सोनकर, पार्षद विनोद सोनकर, ए.के. शर्मा, ताराचंद मेघवानी, पंडित अर्जुन प्रसाद तिवारी, अशोक राजपूत, विक्रम मेघवानी, विकास तिवारी, अशोक श्रीवास्तव, अनिल तिवारी, गायक दिलीप षडंगी, रामकुमार दीवान, रसना तिवारी, युवराज शर्मा, छाया राही, कवि काशीपुरी कुदंन, डी.के ठाकुर गणेश गुप्ता, जे.एस. साहू, प्रवीण देवागंन, मयंक वैष्णव, पुरूषोत्तम मिश्रा, व्यासनारायण चर्तुवेदी, कवियत्री त्रिवेणी नाग सहित बड़ी संख्या में श्रोतागण मौजूद थे।

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