धर्म के रक्षक और सच्चे तपस्वी है नागा साधु, राजिम मेला में सैकड़ों नागा साधुओं का आगमन हुआ



पवन कुमार निषाद
मगरलोड (धमतरी)।। माथे पर तिलक पूरे शरीर पर भभूत, हाथ में भाला, गले में बड़ी-बड़ी माला, चेहरे पर चमक, ओजस्वी, तेजदमक ऐसा प्रतापी व रौद्र जैसा लगने वाला स्वरूप सामने देखकर मन में विस्मय मिश्रित भय सी अनुभूति होती है, लेकिन ऐसा स्वरूप धारण करने वाले नागा बाबा जगत के कल्याणकारी तथा घोर तपस्वी होते है। नागा साधुओं का प्रादुर्भाव आदि जगत गुरू शंकराचार्य के मठों से हुआ है। जब-जब धर्म के समक्ष संकट खड़ा हुआ साधु संत महात्माओं के साथ नागा धर्म की रक्षा के लिए उठ खड़े हुए।
 
 इतिहास गवाह है कि नागा साधुओं ने देश में अपने शस्त्र व शास्त्रों से हिन्दु धर्म की रक्षा की है। कहा जाता है कि  महात्माओं ने नागा साधुओं को धर्म की रक्षा के लिए मुख्य रूप से तैनात किया है। नागा धर्म का आचरण व पालन करने वाले जब भी किसी जीव-प्राणी को दुखी देखते है, तो अपने सारे सुख उसे प्रदान कर देते है। आम जन को दुखी नहीं रहने देते है। नागा साधुओं के महात्मा व प्रताप की कथा कुंभ से भी जुड़ी हुई है। एक समय अत्याचारी राजाओं ने कुंभ पर कब्जा कर लिया था और वे कुंभ के दौरान कई दिनों तक कुंभ क्षेत्र में कब्जा कर लेते थे। आम जनता को कुंभ में पवित्र स्नान करने का अवसर नहीं मिलता था। दुखी लोगों ने नागा साधुओं तक यह बात पहुंचाई तो उन्होंनेे शस्त्र उठाकर अत्याचारी राजाओं के खिलाफ युद्ध का जयघोष कर दिया और राजाओं के शाही स्नान को साधुओं के शाही स्नान की परंपरा शुरू की। कुंभ में सबसे पहले नागा साधु शाही स्नान करते है। तत्पश्चात् श्रद्धालुगण पुण्य स्नान करते हैं। छत्तीसगढ़ के राजिम शहर में आयोजित राजिम माघी पुन्नी मेला में सैकड़ों की संख्या में नागा साधुओं का आगमन हुआ है। जिससे यहां श्रद्धा भक्ति की भावना चार गुनी हो गयी।
 
कहा जाता है कि नागा साधु दुनिया में देश और राज्य की विभाजन रेखा को नहीं मानते। यह विभाजन तो मनुष्य के द्वारा किया गया है। मनुष्यों ने अपने-अपने तरीके से दुनिया का विभाजन कर लिया। नागा साधुओं के लिए पूरा आकाश अपना तम्बू है और पृथ्वी उनकी फर्स है। ऐसी विचार धाराओं के फलस्वरूप नागा साधु एक जगह स्थिर नहीं रहते। वे धर्म की रक्षा के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान विचरण करते रहते है। यह अस्थिरता उनके मन दिमाग को सदैव जागृत रखती है और वे धर्म की रक्षा के प्रति हमेशा सजग व समर्पित रहते है। बताया जाता है कि भारत देश में नागा साधुओं की संख्या 5 लाख से अधिक है। आदि शंकराचार्य के द्वारा भारत देश के उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम चारों दिशाओं में स्थापित मठों से आगे बढ़कर नागा साधु देश भर में फैलते गये। ऐसा महसूस होता है नागा साधु दीन दुनिया से बेखबर, अपने में ही मशगूल रहने वाले अक्खड़ स्वभाव के हठी बाबा होते है। परन्तु वास्तविकता इसके काफी विपरीत है। नागा साधु अत्यंत तपस्वी, विद्वान व सदाचारी होते है।
जिस तरह से भगवान भोलेनाथ ने जहर का प्याला खुद पी लिया और दूसरों को नुकसान से बचाया इसी तरह से नागा साधुओं ने भी संसारिक भोग का त्याग कर दिया लेकिन संसार के लोगों को पीड़ा-दुखों से मुक्ति दिलाने हेतु वे कृत संकल्पित है। राक्षस प्रवृत्ति के तत्व जब-जब धर्म के नुकसान पहुॅचाने की कोशिष करते है तब-तब उन्होंने अपना रौद्र रूप दिखाया है। शेष समय वे तप करतें है, धर्म की माला जपते है। जब धर्म का अहित होता है वे माला गले में धारण करते है और हाथ में भाला उठा लेते है। नागा साधुओं ने अश्लीलता, लोलुप्ता, लेश मात्र भी नहीं होती। वे तो इस संसारिक दुनिया की सभ्यता के प्रतीक है। कई लोग ऐसे भी है जो जानबुझ कर नागा साधुओं के बारे में तरह-तरह केे दुस्प्रचार फैलाते है ताकि धर्म को नुकसान पहुॅचाया जा सके।
 
भारत देश की एकता के लिए जगत गुरू आदि शंकराचार्य ने पूरे देश का भ्रमण किया इसके साथ ही पंचदेव को स्थापित किया। नागा साधु भी पूरे देश का भ्रमण किया इसके साथ नागा साधु भी पूरे देश में फैलते गये। मान्यता है कि नागा साधु चार प्रकार के होते है। पहला राज-राजेश्वरी, दूसरा बर्फानी, तीसरा खूनी व चैथा खिचड़िया। हरिद्वार में जो दीक्षा लेते है वे बर्फानी नागा साधु होते है। उत्तराखण्ड में स्थित हरिद्वार बर्फिला क्षे़त्र है इसलिए यहाॅ दीक्षा लेने वाले नागा साधु शांत स्वभाव के माने जाते है। इलाहाबाद का नागा राज-राजेश्वरी प्रकृति का होता है मतलब राजा की तरह होता है। उज्जैन के नागा साधु अपेक्षाकृत गर्म प्रकृति के होते है। इसलिए यहाॅ के नागा साधुओं को खूनी नागा साधु का नाम दिया गया है। आम मान्यता है कि नागा साधुओं का स्वभाव उग्र प्रवृत्ति का होता है परन्तु यह वास्तविकता है कि जो असल नागा साधु होते है। वे किंचित मात्र भी शराब और मांस का सेवन नहीं करते। काम को अपने नियंत्रण में रखते है। यह भी मान्यता है कि काम को नियंत्रण में रखने के कारण नागा साधुओं में उग्रता बढ़ती है। इसलिए प्रांरभ से उन्हें गांजाओं व भांग के सेवन का छूट है। कुछ राज्यों में तो शासन अपने तौर पर नागा साधुओं को ये चीजें उपलब्ध कराते है। वास्तव में नागा साधुओं को धर्म की रक्षा के लिए सेना का जिम्मा दिया गया है। वे धर्माचार्यों की सेना की तरह काम करते है।

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