झीरम न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट पर बवाल कांग्रेस ने उठाए सवाल, कहा- ऐसा क्या है जो सरकार से छुपाया जा रहा है?

 


प्रेस वार्ता में बोले पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम  जांच के लिए आयोग ने और समय मांगा था तो अचानक ही जांच पूरी कैसे हो गई


वतन जायसवाल

रायपुर। झीरम कांड ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। कांग्रेस ने न्यायिक जांच आयोग की कार्य प्रणाली पर संदेह जताते हुए आरोप लगाया कि विवरण को सरकार के बजाय राज्यपाल को सौंप कर मान्य प्रक्रिया का उलंघन किया गया है। पीसीसी प्रमुख मोहन मरकाम ने कहा कि यदि सरकार इस जांच से संतुष्ट नही हुई तो नई जांच समिति गठित कर सकती है। 


 राजीव भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने झीरम कांड की न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए। श्री मरकाम ने कहा आयोग ने पहले कार्यकाल बढ़ाने की अनुशंसा की थी, अब अचानक क्या हो गया कि रिपोर्ट सरकार को सौंपने के बजाय राज्यपाल को सौंपी दी गई। उन्होंने कहा आम तौर पर जब किसी न्यायिक आयोग का गठन किया जाता है तो आयोग अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपती है। मगर झीरम नरसंहार के लिए गठित जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की ओर से रिपोर्ट सरकार के बजाय राज्यपाल को सौंप दिया गया जो उचित नहीं है। इस तरह की जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपने पर सबसे पहले विधानसभा में प्रस्तुत कर चर्चा कराई जाती है, जिसके बाद सार्वजनिक की जाती है, पर राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपने से यह नहीं हो पाएगा। पीड़ित पक्ष को भी जांच की एक रिपोर्ट दी जानी चाहिए और यह तभी संभव है जब रिपोर्ट विधानसभा पटल पर प्रस्तुत हो।

   प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने बताया जब आयोग का गठन किया गया था तब इसका कार्यकाल 3 महीने का था, मगर आयोग को जांच में 8 साल कैसे लग गए। कुछ समय पूर्व ही झीरम जाँच आयोग ने अपना कार्यकाल बढ़ाये जाने की मांग की थी, मगर एकाएक रिपोर्ट तैयार कैसे हो गई? पीसीसी अध्यक्ष ने कहा कि जितनी बार भी आयोग के जांच का समय बढ़ाया गया, तब पत्राचार राज्य सरकार के साथ हुआ, पर रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी गई। मरकाम ने सवाल उठाया कि आखिर ऐसे कौन से तथ्य हैं, जिसे सरकार से छुपाने की कोशिश हो रही है। जाँच आयोग की रिपोर्ट लीक होने की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता, यदि राज्यपाल के अलावा कोई और इस पर टीका-टिप्पणी करता है, तो इस आशंका को बल मिलेगा। कांग्रेस की मांग है कि राज्यपाल द्वारा बिना टीका-टिप्पणी किये तत्काल रिपोर्ट राज्य सरकार के सुपुर्द की जाए। पीड़ित परिवार के सदस्यों ने भी कहा है कि वे अभी इसी उम्मीद में हैं कि जल्दी न्याय मिले और केंद्र सरकार भी इसमें सहयोग करे। जांच रिपोर्ट में क्या लिखा है, ये पीड़ित पक्षों से भी साझा किया जाए।


 मोहन मरकाम ने कहा कि भाजपा की विकास यात्रा और कांग्रेस परिवर्तन यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था में भारी अंतर था, जबकि महेन्द्र कर्मा और तत्कालीन मुख्यमंत्री दोनों को एक समान सुरक्षा व्यवस्था Z+ मुहैया थी। विकास यात्रा के समय 1789 सिपाही तैनात थे, जबकि परिवर्तन यात्रा के समय मात्र 156 सिपाही की ड्यूटी लगाई गई थी।



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