पंचमी पर हुआ माता रानी का भव्य सोलह श्रृंगार,कुरुद के देवी मंदिरों में चैत्र नवरात्रि का छाया हर्षोल्लास

 



 मुकेश कश्यप

कुरुद।नगर के देवी मंदिरों में चैत्र नवरात्रि का हर्षोल्लास छाया हुआ है। तो वहीं काली मंदिर में आयोजित मेला अपने चरम पर है।नगर की अधिष्ठात्री देवी मां चंडी ,जय माँ काली छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर कुरुद सहित नगर व ग्रामीण अंचलों में विराजित देवी मंदिरो में आज पंचमी के शुभ अवसर पर माता रानी का भव्य सोलह श्रृंगार किया गया।

बुधवार सुबह शुभ मुहूर्त में आज जगतजननी माता रानी का भव्य सोलह श्रृंगार कर जगदम्बे मां को सजाया गया। देवी माँ को विभिन्न श्रृंगार साज साधनों से विधि पूर्वक शक्ति स्वरूपा को सजाया गया।साथ ही जनकल्याण व खुशहाली की कामना की गई।मंदिरों में प्रतिवर्ष अनुसार भक्तगणों ने आस्था के ज्योत जलाकर माता के सम्मुख अपनी श्रद्धाभक्ति प्रकट की है। मिली जानकारी के अनुसार चंडी मंदिर में 641,जय मां काली छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर में 48 घी व 452 तेल ज्योत प्रज्वलित किये गए है।इसी तरह ग्रामीण अंचल में विराजित देवी मंदिरों में भी भक्तों ने मनोकामना ज्योत प्रज्वलित कर जनकल्याण की कामना की है।

      नवरात्र‍ि में सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है। इस दिन मां को 16 श्रृंगार चढ़ाया जाता है। दरअसल ऐसी मान्यता है कि इससे घर में सुख और समृद्ध‍ि आ‍ती है और अखंड सौभाग्य का वरदान भी मिलता है।यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में सोलह श्रृंगार को जीवन का अहम और अभिन्न अंग माना गया है।ऋग्वेद में भी सौभाग्य के लिए सोलह श्रृंगारों का महत्व बताया गया है.सोलह श्रृंगार में मौजूद हर एक श्रृंगार का अलग अर्थ है. बिन्‍दी को भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से जोड़कर देखा जाता है। वहीं सिंदूर सौभाग्‍य और सुहाग की निशानी होती है।महावर और मेहंदी को प्रेम से जोड़कर देखा जाता है।काजल बुरी नजर से बचाता है।मां का सोलह श्रृंगार करने से घर और जीवन में सौभाग्‍य आता है।जीवन में खुशियां ही खुशियां आती हैं और जीवनसाथी का स्‍वास्‍थ्‍य अच्‍छा बना रहता है।


नवरात्रि का पांचवा दिन माता स्कंदमाता के पूजन से जुड़ा है,यह दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।

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