पोषक तत्वों से भरपूर होने की वजह से अण्डा कहलाता है ’सुपर फुड’



मुख्यमंत्री सुपोषण  के तहत अण्डा अथवा सोयाबीन की बड़ी दिए जाने की योजना


धमतरी मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत बच्चों, गर्भवती और शिशुवती माताओं को सुपोषित करने के लिए  जिले में अगले 6 माह की कार्ययोजना बनाई गई है। जिले के ऐसे क्षेत्र जहां बच्चे और महिलाएं कुपोषण का अधिक शिकार हैं, उस क्षेत्र के 155 आंगनबाड़ियों में, आंगनबाड़ी आने वाले 3 से 6 साल तक के बच्चों और गर्भवती माताओं को अतिरिक्त आहार के तौर पर एक अंडा या फिर सोयाबीन की बड़ी दी जाएगी। साथ ही शिशुवती महिला जिनके बच्चे 6 माह तक के हैं, उन्हें भी आंगनबाड़ी में एक वक्त का गर्म पका भोजन दिया जाएगा। उनके आहार में भी अंडा अथवा सोयाबीन की बड़ी को शामिल किया जाएगा। जिले की यह अभिनव पहल, एक कोशिश है, ताकि महिलाओं और बच्चों के भोजन में पोषक तत्वों का संतुलन बना कर उन्हें सेहतमंद रखा जा सके।


        कुपोषण का एक प्रमुख कारण महिलाओं और बच्चों में व्याप्त अनीमिया भी है, जिसको सामान्य भाषा में खून की कमी कहते हैं। खून की कमी को नापने के लिए हीमोग्लोबिन नामक तत्व की जांच की जाती है। यह शब्द हीम तथा ग्लोबिन से जुड़कर बना है, जिसमें हीम नामक तत्व लौह युक्त पदार्थ से तथा ग्लोबिन नामक तत्व प्रोटीन से बना होता है। व्यक्ति के शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हीमोग्लोबिन पर्याप्त मात्रा में होना जरूरी है। आम तौर पर बच्चों और पुरूषों में 13 से 17 ग्राम और बालिका एवं महिलाओं में 12 से 15 ग्राम हीमोग्लोबिन होना चाहिए। सामान्य आहार लेने पर इस तत्व की कमी नहीं होती, लेकिन खान-पान के आचार-व्यवहार में पोषक तत्वों में कमी होती है, तो रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा घटने लगती है तथा व्यक्ति को थकान होती है। साथ ही दैनिक क्रियाकलाप और पढ़ाई करने में उसे तकलीफों का सामना करना पड़ता है। हीमोग्लोबिन की कमी से दिल के आसपास दर्द महसूस होता है। ज्ञात हो कि खून की कमी कोई बीमारी नहीं है, वरन् पोषण संबंधी कमी और अनेक बीमारियों का लक्षण है। आंतो में कृमि का होना, बार-बार चर्मरोग की तकलीफें और बार-बार बच्चों का संक्रमणग्रस्त होना भी खून की कमी पैदा करता है। दस साल से छोटे बच्चे और गर्भवती माताओं में खून की कमी का प्रभाव ज्यादा देखने को मिलता है। आम तौर पर 50 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी पाई जाती है। जिले में बड़ा हिस्सा सिकलसेल और रक्त अल्पता के रूप में सामने आता है।  
खून की कमी को दूर करने के लिए उपचार, परामर्श जरूरी है। साथ ही संतुलित आहार, जिसमें प्रोटीन की अधिकता हो, का सेवन करना चाहिए। अण्डा अपने आप में प्रोटिन का बढ़िया स्त्रोत है, जो अनेक पोषक तत्वों से पूर्ण होने के कारण ’सुपर फूड’ भी कहा जाता है। एक अण्डा अनुमानित तौर पर 60 ग्राम का होता है, इसमें छः ग्राम प्रोटीन होता है। एक अण्डा विटामिन ए, बी-1, बी-2, बी-6, बी-12, विटामिन डी के अलावा विटामिन के, कैल्शियम, मैग्निशियम, आयरन, जिंक, फास्फोरस इत्यादि से भरपूर होता है। इसमें एचडीएल की उचित मात्रा पाई जाती है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में ’गुड कोलेस्ट्राॅल’ भी कहते हैं। ज्ञात हो कि अण्डा हृदय रोग की संभावनाओं को कम करता है। साथ ही इसमें ओमेगा 03, वसीय अम्ल भी पाया जाता है, जो रक्त में ट्राइग्लिसराइड को कम कर पुनः हृदय रोग से रक्षा करता है। वहीं अण्डे में उपस्थित कुछ ऐसे एण्टीआॅक्सीडेंट होते हैं, जो आंखों के लिए बहुत उपयोगी हैं। यह उच्च प्रोटीनयुक्त होने के कारण बच्चों की वृद्धि तथा बड़ों के बाॅडी डिजनरेशन की रोकथाम में सहायक होता है। यह संतुष्टि सूचकांक में भी काफी उच्च स्तर पर है, जो भोजन की पूर्णता का एहसास कराता है। इसके प्रोटीन की जैविक मूल्य लगभग 93.7 प्रतिशत होती है, अर्थात् जो हम ग्रहण करते हैं वह शरीर द्वारा 93.7 प्रतिशत अवशोषित होता है।
एक अण्डा इतने सारे पोषक तत्वों से युक्त है, इसे अपने रोजमर्रा के भोजन में शामिल कर उसे पौष्टिक बनाया जा सकता है। ज्ञात हो कि अण्डा कच्चा नहीं खाना चाहिए क्यांेकि यह आंतों के लिए ठीक नहीं होता, वरन् उबालकर लेना ज्यादा बेहतर होता है। जिनके शरीर में अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन होता है, उसमें रक्त अल्पता नहीं होती है और हीमोग्लोबिन अच्छा बनता है। जो व्यक्ति अण्डा का उपयोग नहीं करते वे सोयाबीन का उपयोग प्रोटीन प्राप्ति के लिए कर सकते हैं। सोयाबीन चमत्कारी बीज है। इसमें सामान्य दलहनों के मुकाबले प्रोटीन तत्व की मात्रा दुगुनी होती है। सोयाबीन की बड़ी की सब्जी, व्यंजन बनाकर अथवा भीगाकर खा सकते हैं। साथ ही खाद्य तेल के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। जहां प्रति 100 ग्राम दालों में 20 से 25 ग्राम प्रोटीन होता है, वहीं सोयाबीन दाल के प्रति 100 ग्राम में 44 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है।  

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