VDO-“अपने लक्ष्य को ऊँचा रखो और तब तक मत रुको जब तक आप इसे हासिल नहीं कर लेते” कर दिखाया चित्रसेन साहू ने


  •  डबल एंप्युटी छत्तीसगढ़ के युवा चित्रसेन साहू ने माउंट किलीमंजारो फतह कर बनाया  रिकॉर्ड 

भूपेंद्र साहू 
धमतरी बीते हुए कल को नहीं बदला जा सकता है लेकिन भविष्य आपके हाथ में है यदि आपको अपने चुने हुए रास्ते पर विश्वास है इस पर चलने का साहस है और मार्ग की हर कठिनाई को जीतने की शक्ति है तो आपका सफल होना निश्चित है  यह कहना है दोनों पैर से दिव्यांग चित्रसेन साहू का

नाम चित्रसेन साहु  इंजीनियरिंग की परीक्षा पास कर मन में सपने लेकर बिलासपुर से निकले हुए थे कि एक दिन भाटापारा रेलवे स्टेशन में ऐसा हादसा हुआ कि पूरी जिंदगी ही बदल गई।दोनो पैर को गंवा देना पड़ा।पर चित्रसेन साहू  ऐसे ही हार मानने वालों में से नही थे…दृढ़ इच्छाशक्ति और परिवार दोस्तो के बदौलत नित नए सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये है।छत्तीसगढ़ शासन की ओर से हीरा ग्रुप के सहयोग से एवं छत्तीसगढ़ के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय पर्वतारोही और माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले एम् एम् फाउंडेशन के संस्थापक 'माउंटेन मैन' राहुल गुप्ता के मार्गदर्शन में हमारे राज्य के ब्लेड रनर, 'हाफ ह्यूमन रोबो' के नाम से जाने जाते है । चित्रसेन साहू अपने पैरों पर खड़े हैं ।

मिशन के तहत अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी तंजानिया स्थित किलिमंजारो फतह कर नेशनल रिकॉर्ड कायम किया है।अफ्रीका महाद्वीप के सबसे ऊंचे पहाड़ किलिमंजारो पर तिरंगा लहरा कर  एक नया मुकाम हासिल कर लिया है ।यह हर भारतीय के लिए गर्व की बात है।प्रोस्थेटिक पैर और बुलन्द हौसलों के दम पर 144 घण्टे चढ़ाई के बाद उन्होंने 5685 मीटर ऊची चोटी पर फतह हासिल की।दूर दृष्टि, कड़ी मेहनत,और पक्का इरादा के धनी चित्रसेन साहू ने बस अपने उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित किया।यह सन्देश है उन हजारों लाखों नवजवानों को जो थोड़ी सी असफलता में हार मान कर मायूस हो जाते है।
मना किया गया
अब चित्रसेन पूरे देश और राज्य के एकमात्र ऐसे युवा हैं जो डबल एंप्युटी  हैं, और माउंट किलिमंजारो की कठिन चढ़ाई पूरी की है। आखिरी दिन श्री साहू ने 12 घंटे की  चडाई -5 से -10 डिग्री तापमान में धूल वाले ठंडी तूफान के बीच लगातार मुश्किल भाग की चढ़ाई पूरी की। इसी दौरान उनके पैर में भी चोटे आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनके द्वारा उहरु चोटी तक पहुंचने का लक्ष्य था लेकिन समय अधिक होने, किलीमंजारो नेशनल पार्क के नियम तथा मौसम और रेस्क्यू को दृष्टिगत रखते हुए व्हा के अधिकारियों द्वारा आगे जाने हेतु मना किया गया|मौसम एवं स्वास्थ्य को मद्देनजर रखते हुए  19 सितम्बर की दोपहर 1 बजे से माउंट किलिमंजारो की  चढ़ाई प्रारंभ की गई तथा 23 की  सुबह 11 बजे फतह किया गया।

बालोद जिले के एक छोटे से गांव बेलौदी का ये बालक आज लोगों के लिए एक मिसाल बन चुका है ।पिताजी कृषक थे।जब जब अपने पिताजी को काम करते हुए देखते थे मन मे एक स्वप्रेरणा जागृत होता था कि एक दिन जरूर अपने गांव अपनी मिट्टी का नाम रौशन करूँगा।पिताजी से ही सीखा समय का प्रबंधन कैसे किया जाता है।शुरुआती शिक्षा ग्राम बेलौदी में ही हुआ । इसके बाद मन में अरमान लिए इंजरिंग की पढ़ाई के लिए बिलासपुर चले गए। 2014 में गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कालेज बिलासपुर से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।अभी वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य शासन हाउसिंग बोर्ड नया रायपुर में  सहायक अभियंता के पद पर पदस्थ हैं ।

घुटने के नीचे दोनों पैर कट चुके  होने के बाद  भी चित्रसेन का मानना है कि अपने हिस्से का काम सबको करना चाहिए और काम करने के लिए कभी नाम और पैसे की जरूरत नही होती ।काम करने की लगन ,जज्बा और सबसे महत्वपूर्ण होता है काम की शुरुआत करना फिर लोग जुड़ते जाते है।दूसरे दिव्यांगों को मोटिवेट भी करते है।खासकर किसी हादसे से शिकार लोगो के सपनो को पंख देने की कोसिस जारी है।कृत्रिम हाथ एवं पैर लगवाने में लोगो की मदद करना मन मे एक शुकुन देता है।पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद चित्रसेन बास्केटबॉल खिलाड़ी है ।उनका मानना है कि खेल और खिलाड़ी दोनो एक स्वस्थ समाज का निर्माण करते है।खेल से शरीर स्वस्थ रहता है स्वस्थ शरीर मे स्वस्थ मन रहता है और अच्छे मन से वह वो सब कुछ हासिल कर सकता है जो वो प्राप्त करना चाहता है।लेकिन इन उपलब्धियों से भी बड़ा है एक अच्छा इंसान बनना जो किसी के तकलीफ में काम आए।


*प्रेरणा*
परिवार और दोस्तो का साथ हमेशा नई ऊर्जा देता है।अरुणिमा सिन्हा माउंटेनियर और मेजर डीपीसिंह प्रथम रनर और माउंटेन मैन राहुल गुप्ता यह सभी मेरे प्रेरणा है,जिनके शिक्षा ,आदर्शो और मार्गदर्शन के बदौलत मैं यह मुकाम हासिल कर पाया।

एमटीआई न्यूज़ चर्चा करते हुए चित्र सेन ने बताया कि उन्होंने जिंदगी में कभी हार नहीं मानी एक समय लगा था कि उनकी जिंदगी खत्म हो गई ।लेकिन उनके जीवन में ऐसा बदलाव आया कि उन्होंने सब कुछ करने की ठान ली और प्रॉस्टेथीक पैर लगाने के बाद निकल पड़े एक नए मिशन पर जहां अफ्रीका के किलिमंजारो  की पहाड़ी चढ़ाई की और तिरंगा लहराया। यह उनके लिए एक अभूतपूर्व क्षण था ।यह शायद दोनों पैर से दिव्यांग होने के बावजूद किलिमंजारो की पहाड़ी चढ़ने वाले पहले भारतीय हैं। उन्होंने उन युवाओं के लिए कहा है जो आज छोटी सी बातों में आत्महत्या जैसी आत्मघाती कदम उठाते हैं कि वह सब कुछ कर सकते हैं मन में विश्वास दृढ़ लग्न शक्ति होनी चाहिए यह जीवन अमूल्य है इससे ऐसे ना गवायें।

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