प्रतिदिन गीता और रामायण का पाठ करने से विपत्ति का अनुभव नहीं होता : विजयानंद गिरी

 



दुर्लभ सत्संग समिति द्वारा आयोजित स्वामी विजयानंद गिरी के प्रवचन का छठवां दिवस


धमतरी। जो व्यक्ति सभी कामनाओं से रहित या सभी कामनाओं से युक्त या मोक्ष की कामना रखता है उसे भगवान का भजन करना चाहिए। भगवान का भजन या स्मरण करने से व्यक्ति कल्याण को प्राप्त करता है। व्यक्ति का इसी से ही भवसागर पार होगा। मनुष्य तो इस संसार पर मुसाफिर बन कर आया है जो अपने मन बुद्धि और कर्मों के द्वारा भटकते रहता है। मनुष्य की आयु जैसे-जैसे बढ़ती जाती है उसका काम, लोभ, मोह, मद की लालसा भी बढ़ते जाता है। भगवान की आराधना और भजन करने के लिए आयु का इंतजार नहीं करना चाहिए। उक्त बातें दुर्लभ सत्संग में स्वामी विजयानंद गिरी महाराज ने प्रवचन के छठवें दिन कही।

स्वामी विजयानंद गिरी महाराज ने आगे कहा कि जब तक किसी चीज की निषेध नहीं होगा तब तक उस चीज की सिद्धि नहीं होगी। मनुष्य जीव परमात्मा का आदि और अंतिम रचना है। इसलिए इस रचना को अपना सौभाग्य समझ कर रचनाकार परमात्मा का स्मरण करना चाहिए। इस संसार में परमात्मा का दर्शन दुर्लभ नहीं है किंतु महापुरुषों का दर्शन दुर्लभ है। मनुष्य शरीर का दुरुपयोग करने से 84 योनि में भटकते रहता है। किंतु महापुरुषों का दर्शन करने, सत्संग से मानव जीवन का कल्याण और उद्धार हो जाता है। जो मानव निद्रा रूप रस को त्याग देता है तो यह समझ जाना चाहिए कि उसमें भगवान के प्रति लगन लग गई है। सच्चा गुरु वह है जो शिष्य के तरफ हमेशा ध्यान रखता है उसे बार-बार पका कर निखार देता है। सच्चा गुरु वह भी है जो शिष्य को परमात्मा में लगन पैदा करके परमात्मा से भेंट करा देता है।


उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य जीवन में चाहे जितने भी विपत्ति या विपरीत परिस्थिति आ जाए निराश नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को भगवान राम और सीता जी के जीवन से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए। दुख और विपत्ति तो मानव जीवन का आधार है। दुख व विपत्ति तो भगवान को भी मिलता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन गीता और रामायण का पाठ करता है उसके जीवन में विपत्ति का अनुभव नहीं होता। दुराचारी से दुराचारी भी भगवान का आराधना और स्मरण करता है उसे साधु मानना चाहिए। जहां भगवान की मंगलमय कथा, स्मरण, आराधना होती है वह स्थान तीर्थ हो जाता है। 


संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो निर्दोष हो किंतु जो व्यक्ति भगवान की आराधना करता है चाहे वह दुराचारी ही क्यों ना हो भगवान की नजर में वह निर्दोष है। भगवान उन्हें अपने चरणों में स्थान देते हैं। संतो के दर्शन करने से जीवन का पूरा पाप नष्ट हो जाता है। मानव अपने कर्मों की तरफ नजर रखेगा तो उसका कभी कल्याण और उद्धार नहीं होगा। उसे तो भगवान की तरफ नजर रखना चाहिए। भगवान की तरफ नजर रखने से मानव जीवन का कल्याण होता है।



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