दान देना है तो छपा कर नहीं बल्कि छुपाकर देना चाहिए : विजयानंद गिरी महाराज

 

दुर्लभ सत्संग समिति द्वारा आयोजित स्वामी विजयानंद गिरी जी महाराज के प्रवचन का पंचम दिवस

धमतरी। दुर्लभ सत्संग समिति द्वारा नूतन स्कूल प्रांगण में स्वामी विजयानंद गिरी जी महाराज के प्रवचन जारी है। दुर्लभ सत्संग के पंचम दिवस उन्होंने कहा कि मानने से बंधन मिलती है और मानने से ही मुक्ति मिलती है। किया हुआ कभी नहीं ठहरता, स्वीकार किया वही ठहरता है। व्यक्ति यह स्वीकार कर ले परमात्मा के सिवाय कोई अपना नहीं है। जो चीज मिली है उसमें ठहराव नहीं होता और अपनी नहीं होती। अपनी चीज है जो हमारे नियंत्रण में है हमारे साथ रहे हमारे बस में रहे हमें स्वीकार है। हमारा शरीर भी हमें मिला है इसलिए असली नाशवान है। क्योंकि यह शरीर हमें परमात्मा से मिला है इसलिए इस शरीर में ठहराव नहीं होता।

उन्होंने आगे कहा कि भगवान के बिना जीव की सत्ता ही नहीं। परमात्मा ने जीव को स्वतंत्र बना दिया है। भगवान ने सृष्टि की रचना करने के बाद अपने आप को अकेला महसूस किया। इसलिए भगवान ने जीव को अपने जैसा बना दिया ताकि अपनी लीला कर सके। जो हमेशा भगवान के सम्मुख रहता है वह कभी उन्मुख नहीं हो सकता। मानव में वह गुण है कि वह अपने कार्यों के द्वारा भगवान को अपने सम्मुख नाचने के लिए मजबूर कर सकता है अपने इशारे पर नचा सकता है। 

विजयानंद गिरी महाराज ने आगे कहा कि कार्य की दृष्टि से सारी चीजें प्रकृति की है, भक्ति की दृष्टि में सारी चीजें भगवान की है, ज्ञान की दृष्टि में सारी चीजें विज्ञान की है। जो व्यक्ति इन चीजों को पकड़ लेता है वह बंधन में हो जाता है। संतों की क्रिया में हमेशा रहस्य होता है इसलिए संतों की क्रिया पर नहीं वचनों पर विश्वास करना चाहिए। संसार में आशक्ति रखोगे तो दुखी रहोगे, किंतु परमात्मा में आशक्ति रखोगे तो कल्याण निश्चित ही हो जाएगा। 

आज संसार चीजों को देता है तो उसे छपा कर देता है। किंतु परमात्मा देता है तो उसे छुपा कर देता है। इसलिए मनुष्य को चाहिए दान देना है तो छपा कर नहीं बल्कि छुपाकर-गुप्त रूप से -देना चाहिए। भगवान के चरणों में जो चीज अर्पित कर दी जाती है वह शुद्ध व पुण्य हो जाता है। मनुष्य अपना संपूर्ण जीवन यदि परमात्मा को समर्पित कर दे तो उसका जीवन पूर्ण व कल्याणकारी हो जाएगा।



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