मुख्यमंत्री ने बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव को पुण्यतिथि पर किया नमन

 


 रायपुर। कंडेल नहर सत्याग्रह के माध्यम से आजदी की लड़ाई में छत्तीसगढ़ के योगदान के सूत्रधार स्वंत्रता संग्राम सेनानी बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव की पुण्यतिथि पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बाबू जी को श्रद्धा सुमन अर्पित किया।


  बाबू जी के योगदान का स्मरण करते हुए श्री बघेल ने कहा कि ‘बाबू साहेब‘ दृढ़ता और संकल्प के प्रतीक थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ में सामाजिक जन-जागरण और स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में शोषण और अन्याय के विरूद्ध किसानों ने ‘कंडेल नहर सत्याग्रह‘ किया। 

   छत्तीसगढ़ में संगठित जनशक्ति का यह अभूतपूर्व प्रदर्शन था। मुख्यमंत्री ने कहा कि माटीपुत्र बाबू छोटे लाल श्रीवास्तव के विचार मूल्य हमारी धरोहर हैं, जो हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।


   बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव का जन्म 28 फरवरी 1889 को कंडेल के एक संपन्न परिवार में हुआ था। पं. सुंदर लाल शर्मा और नारायण राव मेघावाले  के संपर्क में आकर उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया। वर्ष 1915 में उन्होंने श्रीवास्तव पुस्तकालय की स्थापना की। यहाँ राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं मंगवाई जाती थी। धमतरी का उनका घर स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया। वह वर्ष 1918 में धमतरी तहसील राजनीतिक परिषद के प्रमुख आयोजकों में से थे।


बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव को सर्वाधिक ख्याति कन्डेल नहर सत्याग्रह से मिली। अंग्रेजी सरकार के अत्याचार के खिलाफ उन्होंने किसानों को संगठित किया। अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संगठित जनशक्ति का यह पहला अभूतपूर्व प्रदर्शन था। वर्ष 1921 में स्वदेशी  प्रचार के लिए उन्होंने खादी उत्पादन केंद्र की स्थापना की। वर्ष 1922 में श्यामलाल सोम के नेतृत्व में सिहावा में जंगल सत्याग्रह हुआ। बाबू साहब ने उस सत्याग्रह में भरपूर सहयोग दिया। जब वर्ष 1930 में रुद्री  के नजदीक नवागांव में जंगल सत्याग्रह का निर्णय लिया गया, तब बाबू साहब की उसमें सक्रिय भूमिका रही। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में उन्हें कड़ी यातना दी गई। वर्ष 1933 में गांधीजी ने पुनः छत्तीसगढ़ का दौरा किया। वह धमतरी गए। वहां उन्होंने छोटेलाल बाबू के नेतृत्व की प्रशंसा की। वर्ष 1937 में श्रीवास्तवजी धमतरी नगर पालिका निगम के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी बाबू साहब की सक्रिय भूमिका थी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कंडेल में 18 जुलाई 1976 को उनका देहावसान हो गया।

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