बाकी जो बचा तो महंगाई मार गई: कृष्ण कुमार मरकाम

 



 


1974 में रिलीज "रोटी कपड़ा और मकान" नामक फ़िल्म की एक कव्वाली की हैं ,लेकिन आज भी सटीक बैठती हैं.. 


धमतरी ।प्रवक्ता छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कृष्ण कुमार मरकाम ने कहा कि मौजूदा बीजेपी की मोदी सरकार द्वारा  अनियोजित तरीके से की गई नोटबन्दी, GST औऱ तालाबंदी से लोग बुरी तरह बर्बाद हुए ही थे, उसके बाद कोरोना महामारी के चलते देश भर में बड़ी संख्या में लोगो के धन्धे चौपट हुए, लोगो की नौकरियां चली गयी और लोग कर्जा लेकर , अपनी जमा निधि निकाल कर अपना इलाज करवाने और घर चलाने को मजबूर हो रहे हैं।वहीं महंगाई नित नए आयाम छू रही है। 

ये माजरा याद है या भूल गए ?

मैं और मेरे जैसे अनेक लोग जो इस नौटंकी का हिस्सा नहीं बने थे, वह ये सोचते रह गए कि ऐसा आखिर क्यों करवाया गया ? आज जो बेतहाशा महंगाई है,उन्होंने ताली थाली घंटा घंटी की आवाज के पैमाने से अंदाजा लगा लिया कि देश में महंगाई बढ़ा भी दें तो उसका कितना विरोध संभव है.

सच बात तो ये हैं..

जब जब डीजल, पेट्रोल, गैस जैसे पेट्रोलियम पदार्थों के दामो में बढ़ोतरी होगी तो उसका सीधा सीधा असर आम आदमी की रोजमर्रा की जरूरत की चीजो के दामो पर पड़ेगा ही पड़ेगा। क्योकि पेट्रोलियम पदार्थ किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की मुख्य धुरी माने जाते हैं । सारे के सारे धंधे ढुलाई और सप्लाई पर निर्भर होते हैं, अगर ढुलाई सप्लाई महंगी हो जाएगी तो बाकी चीजो के दामो को बढ़ने से कोई नही रोक सकता। आसमान छूते महंगाई हर एक उपयोग की वस्तु बढ़े हुए दाम पर खरीदना हमारी मजबूरी है।


बहुत हुई महंगाई की मार अबकी बार...

जैसे नारो को लेकर बीजेपी की मोदी सरकार सत्ता पाने वाली पार्टी,सत्ता आते ही अपने नारे, वादे सब कुछ भूलकर जनता का खून चूसने में लगी हुई है ! पेट्रोल 100 रुपया लीटर डीजल, 110 रूपया पेट्रोल के पार, घरेलू गैस 900 रुपया से अधिक, और आज कमर्शियल गैस सिलेंडर पर 43.50 रुपये बढ़ा दिए गए यानी अब मोदी सरकार द्वारा बताई गई पकोड़ा रोजगार योजना भी ढंग से नही चला सकते। आमदनी अठन्नी, खर्चा हजारों रूपया,अब कैसे गुजारा होगा। प्रत्येक शब्द सत्य है, इसमें एक भी झूठ नहीं. कोई फर्जी आंकड़ा नहीं,किंतु सत्ता में बैठ इठला रहे केन्द्र कि मोदी सरकार, सत्ता की कुर्सी तक कितने झूठ बोल कर पहुंचे, क्या वह याद है आपको ? कितने झूठे वादे किए गए थे, क्या वह भी भूल गए आप ? तब उनके लिए महंगाई डायन थी, अब सखी सहेली है ?




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