मगरलोड ब्लाक के राजपुर सहित गांवो में महिलाओं ने संतान प्राप्ति व दीर्घायु के लिए रखा व्रत

 



पवन निषाद

मगरलोड।।  रविवार को हलषष्ठी का पर्व अंचल में धूमधाम से मनाया गया। ग्राम राजपुर सहित मोहदी , सरगी ,सोनेवारा, पहंदा, बोरसी, मेघा, लुगे, भैसमुंडी , गिरौद,सौंगा ,अरौद , कुंडेल,मोतिमपुर ,करेली बड़ी,हसदा, नवागांव, खिसोरा,नारधा में  हलषष्ठी पर्व मनाया। सुबह हो रही से लगातार बारिश के बाजवूद  माताओं ने अपनी संतान के लिए दिनभर निर्जला व्रत रखा। सुबह से पूजा की तैयारी में जुटी मााताएं दोपहर होते ही सगरी की पूजा करने निकल पड़ी। कमरछठ पर शिवालयों और चौक चौराहे में सगरी बनाकर पूजा करने महिलाओं की भीड़ लगी रही। सुबह से निर्जला व्रत कर महिलाओं ने दोपहर को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर कमरछठ की कहानी भी सुनी। इस अवसर पर माताओं ने सगरी (कुंड) बनाकर उसे सजाया भी और उसमें मिट्टी की नाव बनाकर भी छोड़ी।



बच्चों की पीठ पर पोती मारकर कीदीर्घायु की कामना
शाम को सूर्य डूबने के बाद पसहर चावल और छह तरह की भाजी व दही खाकर अपना व्रत तोड़ा। पूजा से लौटने के बाद माताओं ने अपने बच्चों की पीठ पर पीली पोती मारकर उनके दीर्घायु की कामना की।नगर के शिव मंदिरों सहित देवी मंदिरों में कमरछठ की सामूहिक पूजा के लिए महिलाओं की भीड़ लगी रही। दोपहर बाद मंदिर में एक के बाद एक ग्रुप में आई महिलाओं ने पूजा की और कथा भी सुनी। जो महिलाएं मंदिर तक नहीं पहुंची, उन्होंने घर के पास ही गड्ढा खोदकर सगरी बनाई और मिलकर पूजा-अर्चना की। 

पसहर चावल खाया
कमरछठ के दिन महिलाओं ने बिना हल के उपजे पसहर चावल जो खेतों की मेड़ पर होता है, उसे ग्रहण किया। साथ ही गाय के दूध, दही, घी के बदले भैंस के दूध, दही, घी का सेवन किया। महिलाओं ने बताया कि  छत्तीसगढ़ में कमरछठ के दिन हल को छूना तो दूर हल चली जमीन पर भी महिलाएं पैर नहीं रखती और हल चले अनाज को ग्रहण नहीं करती।

भगवान बलराम का मनाया जन्म दिन
मान्यता है कि हलषष्ठी के दिन बलराम का जन्म हुआ था और उनके दो दिन बाद जन्माष्टमी को कृष्ण का जन्म हुआ था। वही भगवान कार्तिकेय का जन्म भी हल षष्ठी के दिन माना जाता है। बलराम को शस्त्र के रूप में हल मिला था इसलिए इसे हल षष्ठी भी कहा गया है।

पौराणिक कथाओं का श्रवण किया
माताएं एवं नि:संतान महिलाएं नए साड़ी तथा श्रृंगार से सजकर अपने क्षेत्र में निर्मित सगरी स्थल में एकत्र हुईं और पंडित की अगुवाई में उन्होनें सगरी के किनारे कांसी,लाई,मौहा व मिट्टी से बने खिलौनों को सजाया। वहीं वैदिक मंत्रोपचार के बीच सामूहिक रूप से उन्होनें सर्वप्रथम गौरी गणेश की पूजा की तथा वरूण देवता एवं मां हलषष्ठी का आव्हान किया।

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