स्वामी टेऊँराम महाराज के 135वें जन्मोत्सव के खुशियों भरे चालीसा महोत्सव का चौथा दिन भी चालीहे की चमक व उमंग से भरा रहा

 


धमतरी।सद्गुरु टेऊँराम नगर में स्थित श्री प्रेम प्रकाश आश्रम में गुरुबाबा स्वामी टेऊँराम महाराज के 135वें जन्मोत्सव के खुशियों भरे चालीसा महोत्सव का चौथा दिन भी चालीहे की चमक व उमंग से उकृत एवं खुशियों के खुशनुमा वातावरण से परिपूर्ण रहा |घर घर चालीहा महोत्सव की अपार धूम रही |

आज सद्गुरु बाबा के अनन्य भक्त एवं कर्मठ सेवादारी रहे स्वर्गीय संतरामदास  वाधवानी के परिवार में उनके सुपुत्र  गौरवकुमार के यहाँ चालीसा पाठ का आयोजन आश्रम की चालीसा मण्डली के द्वारा संत जी के सानिध्य में हुआ जहाँ पर संत व मण्डली ने बड़े ही मधुर स्वरों में प्रार्थना, गुरुप्रार्थना अष्टक, कष्ट हरण अष्टक एवं स्वामी टेऊँराम चालीसा का पाठ किया एवं एक भजन जिसको धमतरी के सभी गुरुभक्तों के घरों में चालीसा पाठ के दौरान गाया संत  ने यहाँ भी उस भजन को मण्डली व वाधवानी परिवार ने मिलकर  बड़े ही सुन्दर स्वरों में गाया *सत पुरियूं सदिके कयां, अमरापुर दरिबार तां, गुरूअ जे द्वार तां |वैकुण्ठि भी, वारे छडि॒यां, चाउठि जे चमकार तां, गुरूअ जे द्वार तां |* इस भजन की रचना मण्डल के पूज्य संत स्वामी मनोहर प्रकाश जी ने अमरापुर दरबार की महिमा के प्रति सुन्दर भावों को संजोये हुए की है।



बताया है कि स्वामी टेऊँराम महाराज ने अविभाजित भारत में सिंध के टण्डे आदम शहर के दक्षिण में स्थित जंगल में वारी मतलब रेतीली जमीन पर बैठ कर कठिन तप किया उसी तप का प्रताप ही है जो वहाँ रेत के ऊपर निर्माण जो कि उस समय के साधनों की उपलब्धता से असम्भव व दुस्तर था, वहाँ अमरापुर दरबार का निर्माण हुआ एवं अमरापुर दरबार में ही मण्डल के सभी संतों ने तप करते हुए , नेम टेम का पालन,सत्संग,एवं सेवा की जिससे अमरापुर धाम स्वामी टेऊँराम बाबा जो ईश्वर के नित अवतारी रूप हैं, ईश्वर के अन्य अवतारों में पुरियों का निर्माण हुआ है जैसे जगन्नाथपुरी,द्वारिकापुरी केदारनाथ, बद्रीनाथ, रामेश्वरम आदि के समतुल्य आचार्य जी का भी एक महान तीर्थ बन गया है एवं वहाँ के रेत के एक एक कण में गुरुबाबा के तप का ऐसा प्रभाव हुआ है के वे प्रत्येक कण माणिक, मोती, लाल, हीरा इत्यादि से भी मूल्यवान हैं ।


उन रेत के कणों को शीश पर धारण करने व स्पर्श कराने मात्र से जीव का कल्याण होता है एवं जीव को आचार्य जी की अनुकम्पा की उपलब्धि सहज रूप में हो जाती है, स्वामी जी की सूरत में तप के प्रताप के कारण इतनी कशिश है कि दर्शन करते ही मन प्रसन्न हो भक्ती एवं प्रेम व विश्वास से भर उठता है ऐसे सत्गुरु अमरापुर दरबार में विराजमान हैं जिन के प्रेम व हितकारी स्वभाव पर शीश को न्यौशावर करने को प्रेरणा मिलती है याने उनके चरणों में सिर झुकाने मात्र से अहंकार का नाश होता है, इसी दरबार में आचार्य जी ने सत् नाम साक्षी मंत्र का न केवल जाप किया बल्कि सभी जिज्ञासुजनों को इस मंत्र का नाम दान दे निहाल किया एवं सब जीवों पर उपकार किया है उनके इस उपकार पर गुरुभक्त कोटि कोटि बार सदके, बलिहारी हो धन्यवाद एवं साधुवाद देते हैं।

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