कविता-कहानियों में बस्तर की खूबसूरती पिरोने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार हरिहर वैष्णव का निधन

 



मुख्यमंत्री ने जताया शोक, कहा- बस्तर के लोक साहित्य की समृद्ध विरासत को सहेजने में अपना जीवन समर्पित कर दिया था


वतन जायसवाल

 रायपुर। अपने साहित्य, कविता और कहानियों में बस्तर की खूबसूरती को सुंदरता से पिरोने वाले सु प्रसिद्ध साहित्यकार हरिहर वैष्णव का निधन हो गया।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर के मूर्धन्य साहित्यकार हरिहर वैष्णव के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया।  

मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर शोक व्यक्त करते हुए लिखा  यह साहित्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है । स्व. हरिहर वैष्णव  ने बस्तर के लोक साहित्य की समृद्ध विरासत को सहेजने में अपना जीवन समर्पित कर दिया ।

श्री बघेल ने ईश्वर से उनकी आत्मा की शान्ति और परिजनों को दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है। ज्ञातव्य है कि वैष्णव बस्तर के लोक साहित्यकार थे, उन्होंने जनजातियों में प्रचलित कहानियों, गीतों को लिपिबद्ध किया। हिंदी के साथ ही बस्तर की स्थानीय बोलियों, हल्बी, भतरी में भी उन्होंने साहित्य का सृजन किया।


  जीवन परिचय 

हरिहर वैष्णव जी का जन्म बस्तर के दंतेवाड़ा में 19  जनवरी 1955 को कोंडागांव में श्यामदास वैष्णव और जयमणि वैष्णव के घर हुआ। वर्तमान में सरगीपारा, कोंडागाँव (बस्तर) में रहते थे। आप हिन्दी साहित्य में स्नात्कोत्तर थे। आपने ज़्यादातर कविताएं और साहित्य बस्तर के बारे में ही लिखी हैं।बस्तर के लोक साहित्य के संकलन में किशोरावस्था से ही संलग्न रहे। बस्तर से बहुत गहरा जुड़ाव रहा है। बस्तर की परम्पराओं और संस्कृति को अपने काव्य और गद्य में उतारने पर इनके लेख प्रामाणिक माने जाते हैं। इन्होंने बहुत से बस्तर की जनजातियों में सदियों से गाये-बजाये जाने वाले गीतों को एकत्रित करके उनका अनुवाद करने में किया है।

  आप वन विभाग में लेखाकार के पद पर कार्यरत थे, लेकिन शोध कार्य के लिए पर्याप्त समय न मिल पाने के कारण उन्होंने सेवानिवृत्ति से चार साल पहले ही स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले ली। बस्तर, छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर अनुसन्धान कर्ता हैं।

 मूलतः कथाकार एवं कवि हैं श्री वैष्णव जी ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखनी की है। इनकी अभी तक 24 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, और कुछ प्रकाशित होने वाली है। जिनमें से इनकी मुख्य कृतियाँ हैं: लछमी जगार और बस्तर का लोक साहित्य।हिन्दी के साथ-साथ बस्तर की भाषाओं - हल्बी, भतरी, बस्तरी और छत्तीसगढ़ी में भी समान लेखन-प्रकाशन आपने किया है।आपके साहित्यों ने आपको 'उमेश शर्मा साहित्य सम्मान 2009' सहित कई पुरस्कारों से सम्मान दिलाया।



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